भारत के विकेंद्रीकरण सरकार के निचले स्तरों तक लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का विस्तार है। स्थानीय स्तर पर होने वाले चुनावों के साथ-साथ, विकेंद्रीकरण का तात्पर्य उन शक्तियों और कार्यों के हस्तांतरण से भी है जिनका निर्वाहन स्थानीय सरकारें उत्कृष्ट रूप से कर सकती हैं। चूंकि स्थानीय सरकारों का जुड़ाव जमीनी मुद्दों से ज्यादा होता है, इसलिए उन्हें ज्यादा आसानी से जवाबदेह ठहराकर लोकतंत्र को मजबूत किया जा सकता है।
संविधान सभा का क्या कहना था?
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी का मानना था कि ग्राम पंचायतें लोकतांत्रिक परंपराओं की प्रतीक हैं, और इसलिए स्वतंत्र भारत की राजनीति इन बुनियादी ग्राम इकाइयों पर आधारित होनी चाहिए। लेकिन संविधान सभा में बहुमत ने महसूस किया कि भारत को एक मजबूत, केंद्रीयकृत सरकार की जरूरत है। संविधान सभा, अंत में, एक समझौते पर पहुंची कि संघ और राज्यों को मिलाकर एक दो स्तरीय संघीय प्रणाली अपनाई जाए। नीति निर्देशक सिद्धांतों में ग्राम पंचायतों के प्रावधान को अनुच्छेद 40 के रूप में शामिल किया गया था।
विकेन्द्रीकरण का विस्तार
विकेन्द्रीकरण को संवैधानिक दर्जा
1957 में गठित बलवंत राय मेहता समिति ने त्रिस्तरीय पंचायती राज संरचना का सुझाव दिया जो ग्रामीण नागरिकों को सशक्त बनाएगी। इन सुझावों को स्वीकार कर लिया गया, लेकिन उनके परिपालन का भार राज्यों पर छोड़ दिया गया। कई राज्यों ने 1960-70 के दशकों में इस प्रणाली को लागू किया। कुछ राज्य स्थानीय सरकारों को शक्ति हस्तांतरित करने के लिए अनिच्छुक थे, चुनाव समय पर नहीं होते थे, स्थानीय सरकारों को धन की कमी का सामना करना पड़ता था। यह महसूस किया गया कि इन निकायों को संवैधानिक दर्जा देने से कामकाज में सुधार हो सकता है।
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच काफी समझौते के बाद, 1994 में 73वां और 74वां संशोधन अधिनियम पारित किए गए। इन संशोधनों ने ग्रामीण क्षेत्रों के साथ-साथ नगरपालिकाओं के लिए त्रिस्तरीय पंचायतीराज प्रणाली की स्थापना की। नियमित चुनावों के संचालन और धन के हस्तांतरण की निगरानी के लिए राज्य चुनाव आयोग और राज्य वित्त आयोग का गठन किया गया। इनके तहत स्थानीय सरकारों में और उनके अध्यक्षों के पदों मे ंकम से कम एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं। कई राज्यों ने महिलाओं के लिए 50% सीटें भी आरक्षित हैं।
क्या आप जानते हैं?
1958 में राजस्थान त्रिस्तरीय पंचायती राज व्यवस्था लागू करने वाला पहला राज्य बना।
पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम को 1996 में 5वीं अनुसूची के क्षेत्रों में विकेंद्रीकरण विस्तार करने के लिए पारित किया गया था। अधिनियम में आदिवासी आबादी के स्वशासन की पारंपरिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विशेष सुरक्षा उपाय हैं।
एस.एन. अग्रवाल ने 1946 में संविधान का प्रारूप प्रकाशित किया जिसमें राष्ट्रीय विधायी निकाय के रूप में एक ‘ऑल- इंडिया पंचायत’ का सुझाव दिया- उनके मॉडल में, ग्राम पंचायतें एकमात्र स्तर होंगी जहां प्रत्यक्ष चुनाव होंगे।
This article was first published in the Rajasthan Patrika e-paper.
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