ईश्वर के नाम पर

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12 October 2021
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H V Kamath. Image credit: Agencies

हाल ही में, कर्नाटक के कुछ विधायकों को राज्य मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। जब उन्होंने शपथ ग्रहण किया, तो उन्होंने गौमाता, सेवा लाल, विजयनगर विरुपाक्ष और भुवनेश्वरी जैसे विशिष्ट देवताओं का नाम लिया। इस से विवाद की स्थिति पैदा हुई और संविधान की भावना के खिलाफ होने के कारण इसकी आलोचना की गई।

संविधान की तीसरी अनुसूची मंत्रियों, सांसदों, न्यायाधीशों और भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक को या तो ‘ईश्वर के नाम’ की शपथ लेने या ‘सत्यनिष्ठा की प्रतिज्ञा’ लेने का विकल्प देती है। कोई ‘ईश्वर’ का उल्लेख करता है, कोई नहीं करता। शपथ में ‘ईश्वर’ को शामिल करने का सवाल संविधान सभा में दो बहसों में उठा।

पहली बहस अनुच्छेद 60 (राष्ट्रपति द्वारा शपथ या प्रतिज्ञा के सन्दर्भ में) के इर्द-गिर्द था। एच.वी. कामथ शपथ में स्पष्ट रूप से ‘ईश्वर’ का उल्लेख करना चाहते थे। वह संविधान में ‘ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद’ को शामिल न किए जाने से चिंतित थे और उन्होंने कहा कि संविधान पवित्र होना चाहिए और इसे ‘ईश्वर’ को अर्पित किया जाना चाहिए। बी.आर. अम्बेडकर ने ‘ईश्वर’ को शामिल करना स्वीकार किया लेकिन यह जरूरी नहीं कि कामथ का तर्क ही आधार हो। अम्बेडकर ने तर्क दिया कि यदि राष्ट्रपति चाहें, तो उन्हें ‘ईश्वर’ के नाम पर शपथ लेने की स्वतंत्रता होनी चाहिए – यह दर्शाता है कि अम्बेडकर के लिए यह प्रश्न व्यक्तिगत-पसंद के निर्णय पर आधारित होना चाहिए था। इसके अलावा, अम्बेडकर ने कहा कि इससे राज्य की ‘धर्मनिरपेक्ष’ प्रकृति में कोई बदलाव नहीं आएगा। ईश्वर को शामिल करने के पक्ष में व्यापक समर्थन मिला और संविधान सभा ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

दूसरी बहस तीसरी अनुसूची के इर्द-गिर्द थी। अम्बेडकर ने सभी शपथ से जुड़े अनुच्छेदों में ‘ईश्वर के नाम पर’ शब्द जोड़ने के लिए एक संशोधन पेश किया, शायद इसलिए कि वे निरंतरता बनाए रखना चाहते थे: यदि शपथ से संबंधित एक संवैधानिक प्रावधान में ‘ईश्वर’ के उल्लेख की अनुमति है, तो सभी में होना चाहिए। कामथ ने भी एक संशोधन पेश किया, जो अम्बेडकर के संशोधन के समान ही था। हालांकि, इस बार कुछ ऐसे सदस्य थे जिन्होंने इसका प्रतिरोध किया।

सरदार भोपिंदर सिंह मान ‘ईश्वर’ को शामिल करने के पक्ष में नहीं थे और उन्होंने कहा कि ईश्वर शायद खुद ही संविधान के साथ जुड़ना नहीं चाहते हो। ब्रजेश्वर प्रसाद ने भी अपनी चिंता जताई: उन्होंने महसूस किया कि पद ग्रहण करते समय ‘ईश्वर’ के नाम की शपथ लिए बिना भी कोई ‘ईश्वर’ में विश्वास कर सकता है। जब मतदान किया गया, तो कामथ के संशोधन को संविधान सभा ने स्वीकार कर लिया।

शपथ से जुड़े अनुच्छेदों में ‘ईश्वर’ को शामिल करने के प्रस्ताव पर संविधान सभा ने सहमति दिखाई थी। लेकिन यह सहमति निश्चित रूप से विशिष्ट देवताओं के नाम का समर्थन करने वाले सदस्यों के लिए नहीं था। इसकी पुष्टि सुप्रीम कोर्ट ने उमेश चलियिल बनाम के.पी. राजेंद्रन मामले में की थी। न्यायलय ने फैसला सुनाया कि शपथ या तो ‘ईश्वर’ के नाम पर ली जानी चाहिए या ‘सत्यनिष्ठा की प्रतिज्ञा’ ली जानी चाहिए। संविधान में उल्लेखित शब्दों का कड़ाई से पालन किया जाना चाहिए और ‘ईश्वर’ शब्द को किसी भी ‘भगवान’ के नाम से नहीं बदला जा सकता है।

This piece is translated by Kundan Kumar and Edited by Ekta Shrivastava from Constitution Connect.

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